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Showing posts from March, 2022

दूसरा घर

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उधड़ती सियाही बस पन्नो पर ठहरने के लिए और वक़्त के साथ खुद को धुँधला होने से बचा ही रही थी, कि तभी पहाडों पर सूरज ढलने को हो चला था... चरवाहे अपने जानवरों को पहाडों से नीचे ला रहे थे अपने अपने घरों को लौट रहे थे... एक एक कर के पहाड़ दिए की रोशनी से घरों को और पहाडों  को ऐसे रोशन कर रहे थे कि दूर से देखने पर ये लग रहा था कि कुछ तारे अभी से बस शाम से मिलने को रोशन हुए हैं... यहाँ की ठंडी हवा में सिहरन तो थी पर एक सुकून भी था जो अज़ब तरह से मन को तरंगित कर रहा था... छोटे कमरे के घर अब घर से ज्यादा एक आरामदेह बिस्तर हो चले थे... अँगीठी जो जल रही थी हल्के धुँए के साथ रात के खाने के साथ बस ये उस कमरे की गर्माहट को बरकरार रख रही थी... कुछ दूर पर कहीँ से कोई आवाज़ किसी नदी के किनारे से और जंगलो से इतनी साफ और निर्मल सुनाई दे रही थी जैसे बस इसको बजाने वाला बस यही धुन बजाते जाए और ये शाम कभी भी खत्म ना हो... कुछ महसूस हुआ नया सा ना कि पहाड़ो की शाम शायद ऐसी ही होती है...इतनी ही खूबसूरत और इतनी ही सुरीली... एक कमरा एक अँगीठी थोड़ी सी आग और कुछ मुट्ठी सर्दी... वो लोग जो पहाड़ पर जा नही पाते वो रातों म...

शतरंज

"तकब्बुर" रहा उनको अपने "सिपाह-सालारों" पर... वो "शह और मात" की जंग में "प्यादों" से मात खा गए।।। तकब्बुर- घमण्ड

अंतर्द्वंद्व

 इन दिनों "दीवारों से चुभने" की बात चली है... और मेरा तो "कीलों से मसला" चल रहा है।।।

कुछ इश्क़ कुछ चेहरे

गुज़रे वक़्त में मैं फिर से लौट आया हूँ... मैं कुछ नए चेहरे साथ ले आया हूँ... घर लौट जाने की जल्दी में था... मैं उनका वक़्त भी साथ में लाया हूँ... कुछ खामोश नज़रें सवालों पर सवाल करती हैं... कुछ बेज़ा से जवाब मैं साथ लाया हूँ... कुछ इश्क़ सी बात करते हैं और शोर नही करते... वो तमाम बातें मैं पन्नों में बाँध लाया हूँ... शाम मिलता हूँ और घर को लौट जाता हूँ... ये सिलसिला मैं अपने साथ लाया हूँ... नज़र इश्क़ और वक़्त की बेहिसाब बातें... मैं शिकायतें उनकी अपने साथ लाया हूँ... किसी को ज़ाहिर क्या करना ये सब अपने ही तो हैं... मैं सबके किरदार अपने साथ लाया हूँ।।।

सहर और यादें

रात बस कुछ अभी अपने रंग से रंग ही रही थी कि, कुछ शोर से सुमित की आँख खुल गयी... पूरे दिन की तमाम थकान के बाद उसे ले-देकर ये बिस्तर समझ आता था... अपने दोस्तों में वो कहता रहता था कि वो बस 5000 रुपये उस घर में बस सोने के लिए देता है, कभी रुक तो पाता नही है, मकान मालिक भी शिकायत नही करता क्योंकि उसे वक़्त पर किराया मिल जाता है और फिर जब सोने ही जाना है तो क्या बोले कोई... आँख खुली तो सुमित ने घड़ी की ओर देखा तो क़रीब 2 बज रहा था और बाहर जाकर देखा तो शोर के नाम पर गली में बस कुत्ते भौंक रहे थे... ये शोर जिस से वो जगा था "शायद वहम होगा उसका"  आँख खुल चुकी है अब बिस्तर पर वापस आकर लेट तो गया पर नींद नही थी...सिगरेट की डिब्बी उठाई तो वो भी खाली थी, कुछ पन्ने पास पड़ी किताब के पलटे और फिर जब उसमे भी मन नही लगा तो वो भी बंद कर दी... कमरे में लगे पँखे को देखने और इधर उधर बिखरे सामान को समेटने से फुरसत मिले तब कुछ नया सोचा जाए... कमरे को देखा तो बस ये एहसास हुआ कि ये बस सुमित के लिए बस सोने भर की जगह नही है एक यादगार सफर है... हर दीवार से उसका कुछ न कुछ नाता रहा है...गणित के सूत्र से लेकर न...

नेता-गिरी

 मुझे अपने घर से बेघर किया जा रहा है... उन्हें भी अपना कह कर घर किया जा रहा है... वो हाँथ में गुलदस्ता लिए बाहर खड़े हैं... उन्हें भी इस तरफ दाख़िल किया जा रहा है... कोई सफ़ेदी लिए और कद में ऊँचा सा मिला... सभी को उसके सफेद रंग में शामिल किया जा रहा है... ये नक़ाब-पोशी और मुँह छिपाई सब में... मुझे भी लगता है यहाँ धोखा दिया जा रहा है... जब घर लौट आओ तो मुझसे मिलने भी आना... यहाँ से घर को सफ़र और सफ़र को मंज़िल किया जा रहा है।।।