कुछ इश्क़ कुछ चेहरे
गुज़रे वक़्त में मैं फिर से लौट आया हूँ...
मैं कुछ नए चेहरे साथ ले आया हूँ...
घर लौट जाने की जल्दी में था...
मैं उनका वक़्त भी साथ में लाया हूँ...
कुछ खामोश नज़रें सवालों पर सवाल करती हैं...
कुछ बेज़ा से जवाब मैं साथ लाया हूँ...
कुछ इश्क़ सी बात करते हैं और शोर नही करते...
वो तमाम बातें मैं पन्नों में बाँध लाया हूँ...
शाम मिलता हूँ और घर को लौट जाता हूँ...
ये सिलसिला मैं अपने साथ लाया हूँ...
नज़र इश्क़ और वक़्त की बेहिसाब बातें...
मैं शिकायतें उनकी अपने साथ लाया हूँ...
किसी को ज़ाहिर क्या करना ये सब अपने ही तो हैं...
मैं सबके किरदार अपने साथ लाया हूँ।।।
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